Thursday, April 5, 2012

आओ आज कुछ तूफानी करते हैं.........

आओ आज कुछ तूफानी करते हैं.........

सलीब जिंदगी का, ढोते रहे ताउम्र  
आओ, आज कुछ जवानी करते है ......

दुनिया की फिक्र ने , ठहरी हुई थी दुनिया 
आओ, आज कुछ रवानी करते है .........

रूह तक कांप जाए काफ़िरो की
आओ, आज कुछ रूहानी करते है........

दास्ताँ दुसरो की कब तलक सुने हम  
आओ, आज कुछ कहानी करते है ........

जज्बातों के भंवर से कब तक डरे हम...
आओ , आज कुछ रूमानी करते है ..........

समझदारी ने ''मीत' नासमझ बना रखा
आओ, आज कुछ नादानी करते है ............

आओ आज कुछ तूफानी करते हैं.........


Friday, December 30, 2011

नारी या पुरुष

चल रही थी बहस

नारी या पुरुष??

एक सुदर्शना नारी

जो थी बड़ी प्यारी

लरजते हुए बोली

सज्जनों!

माटी की बनी मैं

पर माटी में ही सिमट कर रह गयी मैं

कभी बेटी का फर्ज निभाया

कभी बहन के रूप में घर को चहकाया

कभी अर्धांगिनी बन कर निभाया

या माँ की ममता का नेह बरसाया

कर दिया अपने को अर्पित

जीवन समर्पित

पर न बन पाई पहचान

क्यूंकि इन पुरुषो के आगे

बिखर गये हमारे अरमान!!!

तभी पीछे की पंक्ति से

आई एक कड़कती आवाज

हमारी भी सुनो

बेशक हम कहलाते हों जंवाज

हमने शिद्दत से छिपा रखा है दर्द

वो अब हो गयी है सर्द

ये दुनिया है बेदर्द

बहुत हो गयी पौरुष की बात

अब नही हो पाता दर्द आत्मसात

हे नारी!! जब तुम थी बेटी!

पापा ने तुम्हें जिंदगी के पथ पर चलना सिखाया

जब तुम थी बहन

हर पल राखी के बंधन

की रक्षा, तेरे भाई के मन में रहा

जैसे ही तू बन के आयी अर्धांगिनी

ता-जिंदगी तुझे खुश रखने का

सातो वचन तेरे पति ने निभाया

फिर माँ की अनमोल ममता

और दूध के कर्ज में

जीवन-पर्यंत बेटे ने बिना कुछ कहे

अपना जीवन लुटाया!!!

सच तो ये है

जिंदगी है एक तराजू

जिसमे एक के साथ करो न्याय

तो दुसरे के साथ दिखता है अन्याय

और इस तराजू के दोनों पलडो

से कर सकते हो तुलना

नारी और पुरुष की.................!

अब बोलो

नारी या पुरुष?

नारी या पुरुष?

नारी या पुरुष ???????

मुकेश कुमार सिन्हा

http://jindagikeerahen.blogspot.com/2011/01/blog-post.html

Gurmeet Singh

सच कहा तुमने
ए पुरुष,
नारी रक्षिता रही सदा ,
बचपन में मात-पिता ने धुप से बचाया,
संग परित्याग का पाठ सिखाया !!

खेल, खिलोने, झूले, मेले,
सहौदर ही अग्रज है, समझाया !!
शेशव बीता , यौवन आया,
पर हाय अपनो ने ही,
" तू तो परायी है " यही जताया !!

जड़ से बेजड हो,
अपने रिश्तो की तलाश में
स्नेह-सौगात आँचल में समेटे
सात वचनों संग बंध,
पी के घर में आई !!!,

तुम शायद पति धर्म को
बलिदान समझो ,
पर मैंने बलिदान
को धर्म समझ निभाया !!

ए पुरुष
यह जीवन चक्र है
और शायद
यही रिवाज है !
जो मेरा कल था ,
वही मेरी आत्मजा
का आज है !!!

हे पुरुष !
जीवन के इस तराजू में व्यर्थ ना रिश्तो को तोल.
नारी के त्याग का नहीं है कोई मोल !!!

[गुरमीत]