Friday, December 30, 2011

नारी या पुरुष

चल रही थी बहस

नारी या पुरुष??

एक सुदर्शना नारी

जो थी बड़ी प्यारी

लरजते हुए बोली

सज्जनों!

माटी की बनी मैं

पर माटी में ही सिमट कर रह गयी मैं

कभी बेटी का फर्ज निभाया

कभी बहन के रूप में घर को चहकाया

कभी अर्धांगिनी बन कर निभाया

या माँ की ममता का नेह बरसाया

कर दिया अपने को अर्पित

जीवन समर्पित

पर न बन पाई पहचान

क्यूंकि इन पुरुषो के आगे

बिखर गये हमारे अरमान!!!

तभी पीछे की पंक्ति से

आई एक कड़कती आवाज

हमारी भी सुनो

बेशक हम कहलाते हों जंवाज

हमने शिद्दत से छिपा रखा है दर्द

वो अब हो गयी है सर्द

ये दुनिया है बेदर्द

बहुत हो गयी पौरुष की बात

अब नही हो पाता दर्द आत्मसात

हे नारी!! जब तुम थी बेटी!

पापा ने तुम्हें जिंदगी के पथ पर चलना सिखाया

जब तुम थी बहन

हर पल राखी के बंधन

की रक्षा, तेरे भाई के मन में रहा

जैसे ही तू बन के आयी अर्धांगिनी

ता-जिंदगी तुझे खुश रखने का

सातो वचन तेरे पति ने निभाया

फिर माँ की अनमोल ममता

और दूध के कर्ज में

जीवन-पर्यंत बेटे ने बिना कुछ कहे

अपना जीवन लुटाया!!!

सच तो ये है

जिंदगी है एक तराजू

जिसमे एक के साथ करो न्याय

तो दुसरे के साथ दिखता है अन्याय

और इस तराजू के दोनों पलडो

से कर सकते हो तुलना

नारी और पुरुष की.................!

अब बोलो

नारी या पुरुष?

नारी या पुरुष?

नारी या पुरुष ???????

मुकेश कुमार सिन्हा

http://jindagikeerahen.blogspot.com/2011/01/blog-post.html

Gurmeet Singh

सच कहा तुमने
ए पुरुष,
नारी रक्षिता रही सदा ,
बचपन में मात-पिता ने धुप से बचाया,
संग परित्याग का पाठ सिखाया !!

खेल, खिलोने, झूले, मेले,
सहौदर ही अग्रज है, समझाया !!
शेशव बीता , यौवन आया,
पर हाय अपनो ने ही,
" तू तो परायी है " यही जताया !!

जड़ से बेजड हो,
अपने रिश्तो की तलाश में
स्नेह-सौगात आँचल में समेटे
सात वचनों संग बंध,
पी के घर में आई !!!,

तुम शायद पति धर्म को
बलिदान समझो ,
पर मैंने बलिदान
को धर्म समझ निभाया !!

ए पुरुष
यह जीवन चक्र है
और शायद
यही रिवाज है !
जो मेरा कल था ,
वही मेरी आत्मजा
का आज है !!!

हे पुरुष !
जीवन के इस तराजू में व्यर्थ ना रिश्तो को तोल.
नारी के त्याग का नहीं है कोई मोल !!!

[गुरमीत]

लम्हा

सुरमई शाम जब सुनहरी लगने लगे
रात के आगोश में सूरज पिघल रहा है कही कही !!!!

तेरी छोटी बात गुनगुनाती रहती है गीत खुशियों के ,
अजनबी , ऐसे अपनेपन की अदा देखी नहीं कही !!!

जिंदगी जब सतरंगी सपनो में संवर चले
जीने की वजह बता, गुजरा है कोई अभी अभी !!!

दिल के तार छु जाता है कोई अपना, बेगाना सा
यादें जब मुस्कुराहटों में बदल जाए कभी कभी

लम्हा- लम्हा मेरे खयालो में बसी रहती है तू
यादे तेरी जुदा मुझ से हुई कभी नहीं !!!

Thursday, December 29, 2011

yaad, aarjoo aur udaasi

आज का दिन तुम्हारी याद मे कुछ यूँ गुज़रा ,
के जैसे तन्हायियो मे तस्सवुर की रात गुज़रती है .. . [नीलम ]

तेरे ख्वाबों की हकीकत में कुछ खोया रहा इस कदर..
के लगा .. हर हवा पुकार तेरा नाम गुजरती है !!!
घंटो बैठा मैं खुद से बाते किया करता रहता हूँ .
इस बेखुदी में कब सुबह.. कहाँ शाम गुजरती है !!!!
तेरी बेरुखी से नहीं .. तेरे बिछड़ने से डरता हूँ ए "मीत"
देख ले मेरी जान, मेरी जान पे क्या गुजरती है

Sunday, December 25, 2011

बरसो बैठा रहा दरगाह पे ..

इक रोटी की उम्मीद कर
आज मयकदे आया तो .. मेरी झोली भर गयी !!!

पता दे कही और का , कही और आज मिला है तू
वाह रे खुदा ..आज मयकशी में खुदाई संवर गयी

Wednesday, November 30, 2011

अजनबी

गुफ्तगू के रास्ते, जाने कब ख्वाबों में उतर गए ,
यादों का इक झोका आया, खुशबू से बिखर गए
'मीत' अकेले में मुस्कुराने की सौगात देकर,
हमे तन्हा छोड़ , कारवा संग गुजर गए !!!

Sunday, April 17, 2011

बता अजनबी, तू कौन है ?

बस खवाब ही तो अपने थे,

अब तस्सवुर में रुसवाईयों का दौर है ,

खुद में तुझ की तलाश ने दीवाना कर दिया !



भटकती हुई गलियों के चौराहे पे ,

आज मुझसे मेरा पता पूछ गया कोई,

तुने मुझे ,अपने शहर में बेगाना कर दिया !!!



आइना देखते हुए 'मीत', अब डर लगता है,

कही मेरा ही अक्स मुझसे पूछ ना बैठे,

बता अजनबी, तू कौन है ?


Wednesday, March 30, 2011


बरस बरस कर नैना बरसे,

झूले रहे सावन के खाली ,

ह्रदय जला दीप जलाये,

प्रतीक्षा में रूठी दीवाली !

पि बिन रंग फीका फीका

अब के बरस बस होली हो ली !!

Saturday, March 19, 2011

Daasta

दास्ताँ बना देते है इक छोटी सी गुफ्तगू को, ..
अफवाहों के हाथ बड़े कातिल होते है !

चीर के दरिया रस्ते बना लेते है जो लोग,
रेत से पानी निकालने के काबिल होते है

Tuesday, March 15, 2011

नश्तर

कुछ टूट सा गया हैं दिल में, कभी हल्कासा सा दर्द हैं.
और कभी चुभता हैं नश्तर की तरह
ये नश्तर भी अजीब है यारो, चुभता है तो मजा आता है.!!!

धडकनों ने बड़ी शिद्दत से आरजू की थी जिसे पाने की ,
दीवानगी की हदे तोड़ दी जिसकी खातिर,
खुद से बिछड़ने की वो, खुदा से दुआ मांग आता है!!! ..

जिसकी दिल की बस्ती में कभी हमारा आशियाना था,
आज मिलता है वो "मीत" मुझसे इक अजनबी की तरह
रुकता है , मुस्कुराता है , फिर निगाहे फेर आता है !!

यादों की तुकबंदी

इक वह दिन, जब खुली के नीचे अपना jaha tha ,
खुशिया थी , गम थे , मस्तियो का कारवां था ,
लड़ते थे , झगड़ते थे ,रोते हस्ते & रुठते -मनाते थे
हॉस्टल का खाना हो , या ढाबे के पराठे; सब मिल खाते थे!
होता था घर से पैसो का इन्तेजार , हरदम थी हालत खस्ती
फिर भी होती थी पहले हफ्ते में सारे ढाबो की मस्ती ,
गोदावरी की काफ्फी , साबरमती के पकोड़े या फिर गंगा की ब्रेड रोल और चाय
Library Canteen का खाना ,या फिर "युनुस भैया, आज क्या बनाए !!
दिन थे मजेदार , प्रिया front stall में जाते थे
कुछ ना था फिर भी बहुत कुछ था ... हम मुस्कुराते थे !!!

आज जमी अपनी है , आसमा अपना है और अपना सारा जहाँ है
लोगो की भीड़ है , फिर भी दोस्तों के बिन यह गुलिस्ता वीरां है !