लफ्ज़ गूंजते . या फिर ख़ामोशी का असर होता
कंधे पर जुल्फे होती तो ..आज हथेलियों में ना सर होता ..
तुझसे बिचड़ के मैं हर रोज मर के जीता हूँ
तू मिलती तो.. शायद कुछ और हसर होता ..
काश यूँ होता तो क्या होता ... काश यूँ ना होता तो क्या होता ...
तू गर मिल जाती तो , मिल जाती जन्नत मुझे
पर शायद तेरे ना मिलने से, 'मीत' गम से बेखबर होता
Monday, July 5, 2010
काश
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gurmeet se meet ka safar ..........mere ko pata na chala...:)
ReplyDeletekoi nahi, ab aate rahunga...:)
tumhari lekhni ko salam!