Saturday, May 29, 2010

chand khyalat

मिलते हुए दिलों के बीच और था फैसला कोई, उसने मगर बिछड़ते वक़्त सवाल कुछ और कर दिया....



बिछड़ने का आलम कुछ ऐसा था मेरे ' मीत ', इक मोती आँखों का, सारा फ़साना कह गया
इक तेरे तब्बस्सुम के खातिर, मैं सारे दर्दो गम सह गया
ज़माने की सुन, दर्द-ए-बेबशी की आंधियो में मेरा ज़माना बह गया ,
तेरे दीदार की इत्नेजार था, कारवां निकल गया, मैं खड़ा रह गया


मुमकिना फैसलों में एक हिज्र का फैसला भी था,
हमने तो एक बात की ,'मीत' ने तो कमाल कर दिया ....
मेरे लबो पे मोहर थी पर मेरे शीशा ए रूह ने तो
शहर के शहर को मेरा वाकिफ ए हाल कर दिया .....

rawatjee

Thursday, May 6, 2010

जीत या हार

कुछ जीत लिखूँ या हार लिखूँ..या दिल का सारा प्यार लिखूँ..
कुछ अपनो के ज़ाज़बात लिखूँ या सापनो की सौगात लिखूँ..

वो पल मे बीते साल लिखूँ या सादियो लम्बी रात लिखूँ..
सागर सा गहरा हो जाऊं या अम्बर का विस्तार लिखूँ..

मै तुमको अपने पास लिखूँ या दूरी का अहसास लिखूँ..
वो पहली -पहली प्यास लिखूँ या निश्छल पहला प्यार लिखूँ..

सावन की बारिश मेँ भीगूँ या मैं आंखों की बरसात लिखूँ..
कुछ जीत लिखूँ या हार लिखूँ..या दिल का सारा प्यार लिखूँ..

Divya Prakash Dubey