मिलते हुए दिलों के बीच और था फैसला कोई, उसने मगर बिछड़ते वक़्त सवाल कुछ और कर दिया....
बिछड़ने का आलम कुछ ऐसा था मेरे ' मीत ', इक मोती आँखों का, सारा फ़साना कह गया
इक तेरे तब्बस्सुम के खातिर, मैं सारे दर्दो गम सह गया
ज़माने की सुन, दर्द-ए-बेबशी की आंधियो में मेरा ज़माना बह गया ,
तेरे दीदार की इत्नेजार था, कारवां निकल गया, मैं खड़ा रह गया
तेरे दीदार की इत्नेजार था, कारवां निकल गया, मैं खड़ा रह गया
मुमकिना फैसलों में एक हिज्र का फैसला भी था,
हमने तो एक बात की ,'मीत' ने तो कमाल कर दिया ....
मेरे लबो पे मोहर थी पर मेरे शीशा ए रूह ने तो
शहर के शहर को मेरा वाकिफ ए हाल कर दिया .....
rawatjee
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