Thursday, March 10, 2011

तेरे नाम

लफ्ज़ गूंजते . या फिर ख़ामोशी का असर होता
कंधे पर जुल्फे होती तो ..आज हथेलियों में ना सर होता ..

तुझसे बिचड़ के मैं हर रोज मर के जीता हूँ
तू मिलती तो.. शायद कुछ और हसर होता ..

काश यूँ होता तो क्या होता ... काश यूँ ना होता तो क्या होता ...
तू गर मिल जाती तो , मिल जाती जन्नत मुझे
पर शायद तेरे ना मिलने से, 'मीत' गम से बेखबर होता !!!

1 comment:

  1. weise kiske nam pe likha ja raha he ye sab....jabtak khwab he tabtak poem hei....khwab jab hakikat ban jati hei....poem reality ho jati hei....jo kabhi khushi aur kabhi gam se bhari huyi hoti hei...

    wish you all the best...

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