Sunday, April 18, 2010

Kuch anchuye khayaalat

मझधार का सामना मैं, क्योंकर करू
रूठ गया है माझी कश्ती में, बैठा के मुझे !

कुछ इस तरह से ख्याल ने उलझाया है तेरे ,
हर गली शहर की दिल्लगी लगती है मुझे

बस ख्वाबों में ही तेरा तस्सवुर है
जगाता रहता है ऐ 'मीत" मेरा बिस्तर मुझे

बेसुध हूँ , बेहोश हूँ, पर बेवफा नहीं ए "मीत"
आईने में अक्स तेरा, अबभी नजर आता है मुझे |

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