Saturday, April 24, 2010

यार मिलते हैं यहाँ, यारी नही मिलती,
दिल मिल जाते है पर दिलदारी नही मिलती !

कहते हैं कि लोग, उठ रहा था धुआं;
लगी थी आग जिससे, वो चिन्गारी नही मिलती !

जाने क्या बात थी , उलझ गये है दोनो,
बेवफ़ा कहा हमे, पर नजर तुम्हारी भी नही मिलती

कह्ते है ... गिरा दो दर्मिया की दीवारें
मिलेगे दिल कैसे , जब चारदिवारी नही मिलती.

क्युं ताउम्र दौलत के पीछे भागे ए 'मीत',
करो जतन लाख, जमी सारी नही मिलती !

चाहते हें, झीलो मे डूब जाने कि 'मीत',
पर हाय, पलको की पहरेदारी नहीं मिलती !

Thursday, April 22, 2010

Yaadein

अक्सर यूँही , अच्छा लगता है
पुरानी यादो मे खो जाना,
बीते हुए कुछ पन्ने पलटना..
कुछ मीठी बातो पर मुस्कुराना
खुशी के कुछ जुगनु टटोलना..

काश ऐसा हो पाता कभी ....
आँख ही न खुले
यह जानता हूँ , "मीत" मैं ,

पल्को ने कैद कर रखे है कुछ सागर
खुली जो ये, तो मोती झिलमिलायेंगे !!!

Sunday, April 18, 2010

Uljhane

ऐ दोस्त , आ , तुझे मंजर-ए दिल दिखाता हूँ |
अपनी उदासी का सबब, तुझे बताता हूँ |

हाल-ए-दिल, हाल-ए-मुफलसी, हाल
ए- गम ;
उलझा हूँ , मैं तुझे भी उलझाता हूँ |

कब वो मुझे जानेगे, कब समझेंगे ;
खुद नासमझ हूँ .. आ, तुझे समझता हूँ |

यह उम्मीद है की ना मिलेगा उन्हें मुझसा कोई
इसी उम्मीद से "'मीत ' दिल को अपने बहलाता हूँ

Kuch anchuye khayaalat

मझधार का सामना मैं, क्योंकर करू
रूठ गया है माझी कश्ती में, बैठा के मुझे !

कुछ इस तरह से ख्याल ने उलझाया है तेरे ,
हर गली शहर की दिल्लगी लगती है मुझे

बस ख्वाबों में ही तेरा तस्सवुर है
जगाता रहता है ऐ 'मीत" मेरा बिस्तर मुझे

बेसुध हूँ , बेहोश हूँ, पर बेवफा नहीं ए "मीत"
आईने में अक्स तेरा, अबभी नजर आता है मुझे |

Madhoshi aur Jutsju

मय की मदहोशी का आलम क्या बताऊ ऐ दोस्त ..
सूरज की तपिश चांदनी का मखमल लगती है
और लफ्जो की गुफ्तगू गजल लगती है
यह मर्ज -ए-मौशकी है या फिर दर्द-ए -जुत्सुजू
उन्हें देख "मीत" हालत संभल लगती है
दो लम्हे

एक

कभी यूँ भी होता है
इक आम शाम भी खास बन जाती है
एक लम्हा सदियों को तरन्नुम दे जाता है
और उमरें उस पल को गुनगुनाते बीत जाती है ||
वो इंडिया गेट की शाम भी कुछ ऐसी ही थी
जब तेरे एहसास ने मुझे छुआ था
जनवरी की धुप की मुस्कराहट ने
राजपथ को रंगीन कर दिया था
बस उस पल यूँही लगा काश
"मीत" इस लम्हे में सदिया बीत जाए

दो

कभी यूँ भी होता है
इक आम शाम भी खास बन जाती है
एक लम्हा सदियों की यादे दे जाता है
और उमरें उस पल को मुस्कुराते बीत जाती है ||
वो शाम भी कुछ ऐसी ही थी
जब तू मेरे करीब था ;
आज फिर में राजपथ पर हूँ
और इंडियागेट के काले -सफ़ेद कैनवास पर
यादो को उतार रहा हूँ
इस गुनगुनाती धुप की जलन का
"मीत" अब तेरे पास मलहम भी नहीं है
बस अब यूँही लगता है
काश उस पल में सदिया बीत गयी होती



Friday, April 16, 2010

Kagaj ke tukado ke dil nahi hote

सहेज रखा है मैंने ,
पहली बस -टिकट को,
कॉफ़ी की पहली रसीद,
चोकलेट का पहला रेपर,
और तेरे पहले ईमेल को !
पहली तकरार के हरे कांच की चूड़िया के टुकडे,
इक काजल की आधी खाली डिब्बी ,
आज भी मेरे लैपटॉप पर तेरी लगाई हुई बिंदी मौजूद है !

संभाल रखा है मैंने हर इक ख़त को ,
जिसके लफ्जों में हर बार तेरी दस्तक सुनाई देती है !
इक वो दिन जब ये ही मेरा सब कुछ होते थे,
इक ये दिन जब "उफ़" होती है इनको अपना कहने मे !

अक्सर बातो से
जज्बातों के मसले हल नहीं होते
पर शायद तुम सही कहती हो ,
कागजो के दिल ही नहीं होते !

मुमकिन है यह भी "मीत", दिल होते ही नहीं है !!!

Tuesday, April 13, 2010

ओये जट्टा .. आई बैसाखी

ठण्ड दी ला के चादर
फुल्लां नु जद्द खिड खिड हस्सी आंदी है
उस वैले ही बस बैसाखी आंदी है


बदला नु चुम्दी
हवा विच झूल्दी सुनहरी फसल जड़
जट्ट नु बुलान्दी है
उस वैले ही बस बैसाखी आंदी है

भंगडे ते गिद्दे दी टोली रल के
जद्द पिंड विच तमाला पौन्दी है
उस वैले ही बस बैसाखी आंदी है

मेरे पंजाब दी मिटटी जद वी
मेनू वाजा मार बुलान्दी है
दिल च इक नवी बैसाखी आंदी है

anonymous

Sunday, April 11, 2010

Apne hi kharrate sunker uth gaya galib....
shayad kharrato mai goonj uske "shero" ki thi !!!

Thursday, April 1, 2010

पहले मुफलिस था,
अब चोर बन गया हूँ
पर इस मरे बाज़ार में चुराऊ भी तो क्या
वही चीजे
जिन्हें लुटा कर मैं मुफलिस बना था !!!'

- graffiti at Lohit